व्यथा

रुका रुका सा मेरा शहर मुझे अच्छा नहीं लगता !
सहमा सहमा सा हर आदमी मुझे अच्छा नहीं लगता !

दूर दूर क्यों मुझसे मेरे सारे अपने है, बंद क्यों सबकी आँखों के सपने है,
खेलता कूदता था जो बच्चा, बैठा उदास है वो अच्छा नहीं लगता,
रुका रुका सा मेरा शहर मुझे अच्छा नहीं लगता,
सहमा सहमा सा हर आदमी मुझे अच्छा नहीं लगता !

विपदा की घड़ी ये जो दुनिया पर आयी है,
लड़नी सबको मिलकर ये लड़ाई है,
मानो सब बात सरकार की इसी में सब की भलाई है,
उल्लंघन करता कोई बंदा मुझे अच्छा नहीं लगता,
रुका रुका सा मेरा शहर मुझे अच्छा नहीं लगता,
सहमा सहमा सा हर आदमी मुझे अच्छा नहीं लगता !

हे मेरे गुरुबाबा ये अरदास तुझसे है,
बंद हो चाहे सब दरवाजे बस एक आस तुझसे है,
सुनते हो प्राथना सदा मेरी, क्यों करदी महर करने में देरी,
क्या मैं तेरा बच्चा नहीं लगता,
रुका रुका सा मेरा शहर मुझे अच्छा नहीं लगता,
सहमा सहमा सा हर आदमी मुझे अच्छा नहीं लगता !



Kavita Tanwani

1 /5
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Reviewed by 1 user

  • Nice post i like it 100 %. I learn something new and challenging on sites I stumbleupon on a daily basis. Its always helpful to read through articles from other writers and use something from their web sites.

    • 3 years ago

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    • 5 years ago

    Bonjour, ton blog est très réussi ! Je te dis bravo ! C’est du beau boulot !:) Arielle Greggory Osber

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