भागते है रास्ते या भागता है इंसान,
कुछ समझ नहीं आता,
क्या चाहता है इंसान |
वक़्त के दरख़तों पर यादें कईं कईं है,
कुछ पड़ी धुँधली कुछ यादें नयी नयी है,
आशाओं के पुलिंदे फिर भी बांधता है इंसान,
कुछ समझ नहीं आता,
क्या चाहता है इंसान |
पुरानी पगडंडियों पर बड़े या तलाशे,
राहें कोई नयी,
दोराहे पर खड़ा ये सोचता है इंसान,
कुछ समझ नहीं आता,
क्या चाहता है इंसान |
बैठ कर सुकून से मन मैं तू झांकले,
चाहता है क्या तू बस खुद से ये भांपले,
अपने मन की बात मान ले,
बन जा तू बलवान,
कुछ समझ नहीं आता,
क्या चाहता है इंसान,
भागते है रास्ते या भागता है इंसान |
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सुन्दर
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बहुत बढ़िया
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आपकी रचना पसंद आई
आपकी लिखी रचना “पांच लिंकों का आनन्द में” शनिवार 28 जुलाई 2018 को लिंक की जाएगी ….http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा … धन्यवाद! -
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