रुई की रजाई

रेशमी मखमली कम्बलों में,
मुझे नींद नहीं आती है,
मुझे तो माँ की साड़ी से बनी,
रूई की रजाई ही भाती है |

ओढ़ कर रजाई को जब मैं सो जाती हूँ,
खुद को माँ के आलिंगन मैं पाती हूँ,
जैसे माँ थपकी देकर सुलाती है,
मुझे तो माँ की साड़ी से बनी,
रूई की रजाई ही भाती है |

ज़िन्दगी की जद्दोजहद मैं कभी परेशान होती हूँ,
ओढ़ कर सर तलक रजाई मैं सोती हूँ,
न जाने कब मेरे पोरो से,
माँ आंसू पोंछ जाती है,
मुझे तो माँ की साड़ी से बनी,
रूई की रजाई ही भाती है |

खुदा ने ये क्या माँ शख्सियत बनायीं है,
जिस्म चले जाते है जहाँ से,
रूह बच्चों के आस पास ही रह जाती है,
मुझे तो माँ की साड़ी से बनी,
रूई की रजाई ही भाती है,
रेशमी मखमली कम्बलों में,
मुझे नींद नहीं आती है |

Kavita Tanwani

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