आज कहानी कहू मै कलम ओर दवात की,
कितने रिश्ते जोडे़ इसने
दू़ मै गवाही इस बात की
बाबा मेरे करके इससे,जोड़ गुणा लगाते थे,
करके हिसाब अपना पूरा नफा हमें दे जाते थे,
आज भी नहीं भूले हम बाते थी जजबात की,
कलम स्याही से खत लिखकर प्रियतम प्रेयसी को रिझाते थे,
कम पड़े स्याही गर तो खून से लिख वो जाते थे,
बन गयी अब सारी बातें भूली बिसरीं याद सी,
युग बदले दुनिया बदली,बदले सारे आयाम,
रह गयी शोपीस बनकर आये ना किसी काम,
आने वाली पीड़ी को खबर भी न होगी इस बात की।।
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